लय( सुर या स्वर)

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
By -

HOME

आप पीछे पढ़ चुके हैं>>>बलाघात : अर्थ एवं प्रकार, अब देखें-

laya_sur_ya_swar
laya sur ya swar

लय (सुर/Tone या स्वर/Pitch)

   स्वर को सुर या लय भी कहते हैं। स्वर का सम्बन्ध स्वरतन्त्रियों के कम्पन की आवृत्ति (Frequency of vibration) पर निर्भर रहता है। यह कम्पन जितना अधिक होगा स्वर उतना ही उच्च होगा और कम्पन जितना कम होगा 'स्वर' उतना ही निम्न होगा। स्वरतन्त्रियों के तनाव या विस्तार से कम्पन की आवृत्ति का साक्षात् सम्बन्ध है। जब कम्पन की आवृत्ति अधिक होती है, तो तन्त्रियों में तनाव उत्पन्न होता है। जब कम्पन की आवृत्ति कम होती है तो स्वरतन्त्रियाँ ढीली रहती हैं। संगीतशास्त्र में अपनी इच्छा और आवश्यकता के अनुसार स्वर की उच्चता और निम्नता को बढ़ाया और घटाया जा सकता है। ध्वनियों के विवेचन में घोष और अघोष ध्वनियों का उल्लेख किया गया है। इनमें से अघोष ध्वनियों के उच्चारण में स्वर तन्त्रियों में कम्पन नहीं होता है। अतः इनमें सुर की सम्भावना नहीं रहती है। सुर मुख्यतः घोष ध्वनियों पर निर्भर रहता है, क्योंकि इनके उच्चारण में स्वरतन्त्रियों में कम्पन होता है।

   स्वर का सम्बन्ध स्वरतन्त्रियों से है। स्वरतन्त्रियों की उपमा तार वाले बाजों सितार, वीणा, वायलिन आदि से दी जा सकती है। जिस प्रकार तारों को कस देने से सितार आदि में स्वर ऊँचा हो जायेगा और तारों को ढीला कर देने पर स्वर निम्न हो जाएगा। इसी प्रकार स्वरतन्त्रियों में तनाव पैदा होने पर स्वर उच्च हो जाता है और तनाव ढीला होने पर स्वर निम्न हो जाता है। अतएव संगीतशास्त्र में स्वरतन्त्रियों को कड़ा और नरम रखकर अनेक प्रकार के सुर उत्पन्न किये जाते हैं। सुरों के उतार-चढ़ाव के लिए स्वरतन्त्रियों पर अधिकार करना आवश्यक होता है।

   स्वरतन्त्रियों के तनाव के अतिरिक्त उनका आकार भी महत्त्वपूर्ण है। स्वरतन्त्रियाँ जितनी छोटी होती हैं, उतना ही स्वर ऊँचा होता है। स्त्रियों और बालकों की स्वरतन्त्रियों का आकार छोटा होता है, अतः पुरुषों की अपेक्षा उनका स्वर उच्च होता है।

 सुर के भेद

 जिस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति बोल-चाल में एक ही प्रकार के बलाघात का प्रयोग नहीं करता, उसी प्रकार व्यवहार में प्रयुक्त वाक्यों में सुर भी एक सा नहीं में होता है। क्रोध, आवेश, हर्षातिरेक, भय आदि में स्वर उच्च हो जाता है और सामान्य स्थिति में वह साधारण रहता है। सुर दो प्रकार का होता है -

1. आरोह 

2. अवरोह

आरोह

  को आरोह कहते हैं ।संगीत में आरोह की स्थिति में आवाज ऊँची की जाती है ।

अवरोह

   सुर की उच्चता के उतार या निम्नता को अवरोह कहते हैं। अवरोह की स्थिति में आवाज  निम्न हो जाती है। 

स्वर के भेद

  1. उच्च

  2. निम्न

  3. सम

  उच्च में स्वर नीचे से ऊपर जाता है। निम्न में ऊपर से नीचे आता है और सम में बराबर रहता है। इसको ध्वनिविज्ञान में आरोही अवरोही और सीधी रेखाओं से अंकित किया जाता है, जैसे- "उच्च स्वर-(/) निम्न स्वर-(\) और सम स्वर- ( | )" वैदिक भाषा में इन्हें उदात्त, अनुदात्त और स्वरित कहते हैं। उन्हें प्राय: उच्च, निम्न और सम स्वरों के समकक्ष माना जा सकता है।

सुर-लहर(Intonation)

    शब्दों या वाक्यों में आरोह और अवरोह के क्रम को सुर-लहर कहते हैं। प्रत्येक वाक्य में स्वर-लहर आदि से अन्त तक विद्यमान रहती है। मुख्यतः स्वर-लहर के दो भेद किये जाते हैं-

1. शब्द सुर-लहर 

2. वाक्य सुर लहर

  तान भाषाओं में ये दोनों सुर-लहरें सार्थक होती हैं। संस्कृत, हिन्दी आदि अतान भाषाओं में केवल 'वाक्य सुर लहर' काकु या व्यंग्य आदि के रूप में प्रयुक्त होता है।

आगे देखें>>>भाषा का पारिवारिक वर्गीकरण<<<

और पढ़ें>>>

बलाघात : अर्थ एवं प्रकार,  

अक्षर ध्वनियाँ एवं भेद,   

ध्वनि परिवर्तन के कारण और दिशाएँ,   

स्वर तथा व्यञ्जन ; अर्थ, एवं वर्गीकरण,  

भाषाशास्त्रियों के महाभाष्य सम्बन्धी मत का खण्डन,   

ध्वनि वर्गीकरण के सिद्धान्त एवं आधार,    

भाषाऔर बोली : अर्थ एवं भेद,   

वैदिक और लौकिक संस्कृत में भेद,   

भाषा विज्ञान एवं व्याकरण का सम्बन्ध,    

भाषा उत्पत्ति के अन्य सिद्धान्त,    

भाषा उत्पत्ति के सिद्धान्त । वेदों का अपौरुषेयत्व एवं दिव्योत्पत्तिवाद,  

भाषा क्या है? भाषा की सही परिभाषा

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!