महिला आईएएस ने नहीं करवाया कन्यादान ,यह करना कितना सही, सूरज कृष्ण शास्त्री

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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kanyadaan
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हाल ही में एक आईएएस महिला अधिकारी ने अपने विवाह में पिता को कन्यादान करने से मना कर दिया यह कहकर कि कन्या कोई दान की वस्तु नहीं है । वास्तविकता यह है कि कन्यादान भारतीय संस्कृति के अन्तर्गत आने वाले षोडश संस्कारों में विवाह संस्कार का एक बहुमूल्य अङ्ग है ।

अब प्रश्न यह है कि कन्यादान करना चाहिए या नहीं । इसी प्रश्न को लेकर कुछ विचार प्रस्तुत कर रहा हूं । कृपया अन्त तक पढ़ें ।

बन्धुओं,

हिन्दू विवाह संस्कार २२ चरणों में सम्पन्न होता है जिसमें सिन्दूरदान, पाणिग्रहण, सप्तपदी आदि प्रमुख हैं । इसके अतिरिक्त एक और चरण है जिसका नाम है 'कन्यादान' ।

प्रो. रामकृष्ण पाण्डेय "परमहंस"(पुराणेतिहास विभाग, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय गङ्गानाथ झा परिसर प्रयागराज) के अनुसार-

कन्यादान का अर्थ है- कन्या के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु सत्पात्र वर को अपने दायित्वों का दान । कन्यायै वराय दायित्वानां दानमिति । 

"कन्या के संरक्षण की जिम्मेदारी वर को संकल्पपूर्वक देना कन्यादान है ।"

दान दो प्रकार का होता है ।

१. वस्तु का दान

२. वचन/दायित्वों का दान

यहां यह समझना आवश्यक है कि वस्तुगत दान पर स्वामी का अधिकार सर्वदा के लिए समाप्त हो जाता है ।

परन्तु जो द्वितीय प्रकार है उसमें वचन/दायित्वों का दान किया जाता है जिसमें देने वाले व्यक्ति का अधिकार पूर्णतया समाप्त नहीं होता । जैसे- हम गोदान करते हैं, गोदान में गाय के दान का अर्थ यह हुआ कि चारा,पानी और उसके रखरखाव की जिम्मेदारी अब हम उस गाय को लेने वाले पर सौंप रहे हैं । यहां गाय वस्तु न होकर प्राणी है तथा उसके लालन-पालन की जिम्मेदारी गोदान ले रहे व्यक्ति की हो जाती है । यदि गोदान लेने वाला व्यक्ति उस गाय का पालन पोषण ठीक ढंग से नहीं कर रहा या कि उसको कसाई खाने भेज रहा तो गोस्वामी अर्थात् गोदान करने वाले व्यक्ति का अधिकार है कि ऐसा करने वाले व्यक्ति को रोके । इस प्रकार हमें यह समझना आवश्यक है कि ऐसे दान में दान देने वाले व्यक्ति का अधिकार दान देने के बाद भी कायम रहता है, इसी तरह कन्यादान भी एक दान है । क्या कन्यादान के बाद बेटी से पिता का रिश्ता समाप्त हो जाता है या फिर कभी बेटी अपने माता-पिता के यहां नहीं जाती । रिश्ते वही होते हैं दायित्व या जिम्मेदारी पिता से हटकर वर के ऊपर आ जाती है । यदि वर ऐसा नहीं कर पा रहा, अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहा तो पिता का पूरा अधिकार है कि वह कन्या के हित में फैसले ले ।

शब्दकोशों पर भी एक बार नज़र डालें--

'हिन्दी शब्दसागर कोश' के अनुसार  कन्यादान का शाब्दिक अर्थ है - विवाह में वर को कन्या देने की रीति ।

शब्दकल्पद्रुम कोश के अनुसार - 

कन्याया दानं वराय सम्प्रदानं अर्थात् वराय कन्या सम्प्रदानम् । वर को कन्या सौंपना ।

रामकृष्ण मठ -A concise Encyclopedia of Hinduism के अनुसार-

कन्यादान

kanyādāna

(‘gifting the maid [to the young man in marriage]’

Hinduism considers marriage as a sacrament. Husband and wife are fellow travellers and companions in the path of spiritual evolution.

When a suitable young man has been found as a match for his daughter, the father of the girl had to give her to him in a religious rite known as ‘kanyādāna’.

Kanyādāna is one of the several steps involved in the much bigger process called ‘vivāha’ or marriage. The girl's father of the bride tells the bride-groom in this rite that he should not prove false to the bride in धर्म, अर्थ and काम. The latter responds with the words, ‘nāticarāmi’ (‘I shall not do so.’).

This rite described in the ancient धर्मशास्त्रस् has practically remained the same even to this day.

हिंदी अर्थ -

 

 हिंदू धर्म मैरिज या विवाह को एक संस्कार मानता है । आध्यात्मिक विकास के मार्ग में पति और पत्नी साथी यात्री हैं ।

 जब एक पिता उपयुक्त युवक का अपनी बेटी के लिए चुनाव करता है, तो लड़की का पिता 'कन्यादान' नामक धार्मिक संस्कार के द्वारा अपनी पुत्री वर को सौंप देता है । 

 कन्यादान 'विवाह' या 'मैरिज' नामक बहुत बड़ी प्रक्रिया में शामिल कई चरणों में से एक है। अग्नि को साक्षी मानकर लड़की का पिता/अभिभावक अपनी बेटी के गोत्र का दान करता है। इसके बाद बेटी अपने पिता का गोत्र छोड़कर पति के गोत्र में प्रवेश करती है। कन्यादान हर पिता का धार्मिक कर्तव्य है।  कन्या का पिता इस संस्कार में वर से कहते हैं कि धर्म, अर्थ और काम की सिद्धि में हमारी पुत्री का सदैव साथ देना, अपने संकल्प का, अपनी मर्यादा का, अतिक्रमण कभी मत करना । उत्तरार्द्ध शब्दों के साथ वर प्रतिक्रिया करता है, 'नातिचरामि' ('मैं ऐसा नहीं करूंगा।') तत्पश्चात् वह पिता अपनी पुत्री वर को सौंप देता है ।

 प्राचीन धर्मशास्त्रों में वर्णित यह संस्कार व्यावहारिक रूप से आज भी वैसा ही बना हुआ है।

और अग्नि पुराण का वचन है कि -

कन्यादानन्तु सर्वेषां दानानामुत्तममं स्मृतम् ।

तस्मात् कन्या प्रयत्नेन दातव्या श्रेय इच्छता ।।

कन्यादान सभी दानों में श्रेष्ठ है अतः प्रयत्नपूर्वक अपने कल्याण के लिए कन्या का दान करें ।

शास्त्रों में कहा है - 

सत्पात्रे दीयते दानम् । सत्पात्र को दान देना चाहिए ।

अस्तु सत्पात्र को अपनी पुत्री को सौंपना चाहिए । धान के पौधे के सम्पूर्ण विकास हेतु जिस प्रकार धान के बीज का वपन अन्यत्र और रोपण अन्यत्र होता है उसी तरह कन्या का सम्पूर्ण विकास पिता के घर में नहीं हो सकता है (हो जाए तो अच्छी बात है) अतः यह कन्या प्रदान करने की व्यवस्था समाज में बनाई गई । 

हमारे धर्म में जबरदस्ती की कोई बात नहीं है यदि किसी को कोई बात अच्छी न लगे तो मत करें लेकिन शास्त्रीय परम्पराओं पर प्रश्नचिन्ह लगाने से पूर्व उसके विषय में विद्वानों से चर्चा अवश्य करें । उसका निर्णय स्वयं न करें । रही आईएएस महिला अधिकारी की बात तो अपने परिश्रम से वो स्थान प्राप्त किया है जो कोई-कोई प्राप्त करता है । परन्तु माता पिता से या अन्य किसी अच्छे विद्वान से सम्पर्क न होने की स्थिति में भारतीय संस्कृति और सभ्यता समझने में विफल रही । कुछ दिन पहले ऐसा ही ज्ञान ‘मान्यवर’ कंपनी के विज्ञापन में आलिया भट्ट द्वारा दिलाया गया था।  हिंदू धर्म के विवाह मंत्रों की रचना किसी पुरुष ने नहीं, बल्कि विदुषी सूर्या सावित्री ने की थी। 

अतः आप सभी से अनुरोध है कि किसी शास्त्रीय परम्परा का विरोध करने वालों पर आंख बंद करके विश्वास न करें । अपने माता-पिता, आचार्यों, श्रेष्ठ गुरुजनों से सही अर्थ जानने समझने का प्रयास करें । वामपंथियों से बचें ।

आप सबका मङ्गल हो ।

यदि आपके मन में किसी प्रकार का विचार या आशंका हो तो कमेंट करके अवश्य बताएं , धन्यवाद ।

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