दोस्तों ! हम सबने देखा >>>ध्वनि परिवर्तन के कारण और दिशाएँ । अब हम सब आक्षरिक ध्वनियों उसके भेदों के विषय में चर्चा करेंगे ।
अक्षर ध्वनियाँ एवं भेद |
अक्षर(Syllable)
'अक्षर' की परिभाषा करते हुए महाभाष्यकार पतञ्जलि लिखते हैं-
अक्षरं नक्षरं विद्यादश्नोतेर्वा सरोऽक्षरं वर्णं वाऽऽहुः ।(म. भा. १.१.२)
अर्थात् अक्षर उसे कहते हैं जो 'न क्षरम्' अर्थात् जिसका कभी नाश नहीं होता और जो सर्वत्र व्याप्त होता है। अक्षर को ही वर्ण भी कहते हैं।
अक्षर की उत्पत्ति के सन्दर्भ में आचार्य का कहना है कि आकाश और वायु के संयोग से उत्पन्न होने वाला, नाभि के नीचे से ऊपर उठता हुआ जो मुख को प्राप्त होता है, वह नाद है, यही नाद कण्ठ आदि स्थानों में विभाग को प्राप्त होकर वर्णभाव को प्राप्त करता है। यह अक्षर बुद्धि रूपी गुहा में स्थित रहता है।
आकाशवायुप्रभवः शरीरात्समुच्चरन् वक्त्रमुपैति नादः।
स्थानान्तरेषु प्रविभज्यमानो वर्णत्वमागच्छति यः स शब्दः॥
अक्षर के विषय में भारतीय परम्परा में वैयाकरणों की यही सोच है।
भाषाविज्ञान में अक्षर शब्द पारिभाषिक अर्थ में प्रयुक्त है। अक्षर के लिए अंग्रेजी में प्रचलित शब्द (syllable) (सिलेबिल) है। अक्षर में मुख्य रूप से दो प्रकार की ध्वनियाँ होती है-
(1) स्वर ध्वनियाँ,
(2) व्यञ्जन ध्वनियाँ।
आक्षरिक ध्वनियाँ
आक्षरिक ध्वनियाँ उन ध्वनियों को कहते हैं, जो समीपवर्ती अन्य ध्वनियों की अपेक्षा अधिक स्पष्ट सुनाई पड़ती है। बोलते समय, वार्तालाप के समय, गाने के समय तथा टेलीफोन आदि सुनते समय यह स्पष्ट रूप से ज्ञात होता है कि कुछ ध्वनियाँ अधिक स्पष्ट सुनाई पड़ती हैं। प्रयोग के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि आस-पास की व्यञ्जन ध्वनियों की अपेक्षा स्वर ध्वनियाँ अधिक स्पष्ट सुनाई पड़ती हैं। इनमें मुखरता(Sonority) अधिक होती है। मुखरता का निर्णय अन्दर से आने वाली वायु के मुखविवर में गूंज के आधार पर किया जाता है। व्यञ्जनों की अपेक्षा स्वर ध्वनियों में अधिक मुखरता के कारण स्वरों को
आक्षरिक (syllabic) कहा जाता है और व्यञ्जनों को अनाक्षरिक (Non-syllabic)। स्वर ह्रस्व हो या दीर्घ, वह ही शब्दों या वाक्यों में आक्षरिक रहता है। स्वर की सत्ता में व्यञ्जन को आक्षरिक नहीं माना जाता है। यदि कहीं पर स्वर का उच्चारण सर्वथा नहीं हो पाता तो उस अवस्था में कुछ विशेष व्यञ्जन आक्षरिक हो जाते हैं। इससे यह सिद्ध है कि अक्षरों की आधारभूत ध्वनियाँ आक्षरिक हैं।
श्रृंग और गर्त (Peaks and Valleys)
श्रृंग का अर्थ-उच्च और गर्त का अर्थ- निम्न है। श्रृंग के लिए शिखर, चोटी या शीर्ष शब्द का भी प्रयोग होता है। गर्त के लिए गहर या घाटी का। इसे इस प्रकार समझना चाहिए कि जिस प्रकार भूमि सब जगह समतल नहीं। होती, कहीं भूमि सम तो कहीं विषम। अर्थात् कहीं पहाड़ है तो कहीं गहरी खाई और ये गहरी खाई दूर नहीं ऊँची पर्वत की श्रृंखलाओं के पार्श्व में ही पहाड़ की घाटी गहरी खाई के रूप में दिखलाई पड़ती है। इसी प्रकार प्रत्येक शब्द या वाक्य में मुखरता के आधार पा कुछ ध्वनियाँ श्रृंग के समान उच्च होती हैं और कुछ ध्वनियाँ गर्त के समान निम्न अर्थात् ध्वनियों की स्थिति पर्वत की उत्तंग शिखरों के सदृश है तो साथ-ही पहाड़ की घाटी के समान भी है। कुछ ध्वनियाँ शीर्ष, शिखर या शृंग हैं तो कुछ गर्त या गह्वर ध्वनियाँ भी हैं। सामान्य विभाजन में स्वर ध्वनियाँ शृंग हैं और व्यञ्जन ध्वनियाँ गर्त हैं। भौतिक विज्ञान में शृंग को crest (क्रेस्ट) और गर्त को Trough (ट्रफ) कहते हैं। उदाहरणार्थ- 'माता' शब्द को निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है ।
shring aur gart |
अर्थात् शृंग या शिखर वे ध्वनियाँ है, जिनके उच्चारण में मुखरता अधिक होती है। गर्त या गह्वर वे ध्वनियाँ हैं, जिनके उच्चारण में मुखरता बहुत कम होती है। ये ध्वनियाँ पर्वत की चोटी के समान ऊँची और घाटी के समान नीची होती हैं।
किसी शब्द या वाक्य में जितने शृंग होते हैं, उतने ही अक्षर माने जाते हैं। व्यंजन ध्वनियों की अपेक्षा स्वर ध्वनि अधिक मुखर होती है। अतः शृंगों के द्वारा स्वर ध्वनियों को प्रदर्शित किया जाता है तथा गर्त के द्वारा व्यञ्जन ध्वनियों को। ऊपर चित्र में स्वर श्रृंग पर दिखाये गये हैं और गर्त पर व्यंजन प्रदर्शित किये गये हैं। व्यंजन और स्वर जहाँ मिश्रित होते हैं, जैसे माता यहाँ यह बताना कठिन है कि 'मा' के उच्चाराण में कहाँ म्' समाप्त होता है तथा कहाँ से 'आ' का उच्चारण आरम्भ होता है। अक्षरों की गणना में व्यञ्जन भी समाहित होते हैं, अत: 'माता' में दो आक्षरिक (syullabic) ध्वनियाँ मानी जायेंगी।
यहाँ यह तथ्य ध्यान में रखने योग्य है कि केवल स्वर नाम के आधार पर सभी स्वरों को आक्षरिक नहीं मानना चाहिए। इसी प्रकार सभी व्यञ्जन भी अनाक्षरिक नहीं है। जिस प्रकार कुछ स्वर अनाक्षरिक हैं, उसी प्रकार कुछ व्यञ्जन भी आक्षरिक हैं।
अनाक्षरिक स्वर (Non-syllabic Vowels)
आक्षरिक स्वर का निर्णय बलाघात (stres) के आधार पर किया जाता है। यदि क्रमश: दो स्वर हैं, जैसे- आए, गए और यदि दोनों स्वर मुखर हैं तो उन्हें दो स्वतंत्र आक्षरिक माना जायेगा। यदि दो इकट्ठे स्वरों में एक मुखर है और दूसरा नहीं, तो दोनों स्वरों को एक आक्षरिक माना जायेगा, जैसे- फ्रेंच में Pays (पेई-देश या मातृभमि) में दो स्वर दो अक्षरों के शृंग हैं, अत: इसमें दो आक्षरिक माने जाते हैं। इसके विपरीत अंग्रेजी में Pay (पे- वेतन) में केवल एक ही आक्षरिक है। आएँगे, जाएँगे में तीन-तीन आक्षरिक माने जाएँगे। जैसे- फ्रेंच Aerer (आएरे-हवा करना) में तीन आक्षरिक माने जाते हैं। संयुक्त स्वरों में दो ध्वनियाँ होती हैं। जैसे- ऐ-अई, औ-अउ, इसमें प्रथम ध्वनि आक्षरिक है और दूसरी ध्वनि अनाक्षरिक। अतः प्रथम ध्वनि मुखर होने के कारण स्वरों के तुल्य आक्षरिक रहती है और दूसरी ध्वनि (इ, उ) मुखर न होने के कारण व्यंजनों के तुल्य अनाक्षरिक होती है। इसका स्थान व्यंजन के समकक्ष है। अनाक्षरिक स्वर की सूचना के लए संयुक्त स्वरों के इ और उ के नीचे लघु स्वरबोधक चिह्न लगा दिया जाता है। जैसे- (ei, au) में इ और उ ।
आक्षरिक व्यंजन (Syllabic Consonants)
साधारणतया व्यञ्जन अनाक्षरिक होते हैं। परन्तु कुछ व्यंजन ऐसे भी हैं, जो आस-पास की व्यञ्जन ध्वनियों से अधिक मुखर होते हैं। इस आधार पर इन व्यंजनों को भी आक्षरिक माना जाता है। इसमें मुख्य रूप से उल्लेखनीय है- म् न् ल् और र् । स् भी कहीं-कहीं आक्षरिक रूप में पाया जाता है। अन्य व्यंजन भी आवश्यकतानुसार आक्षरिक हो सकते हैं। यह सब कुछ उनकी मुखरता पर निर्भर करता है। जैसे- Apple (एप्ल्-सेव), Rhythm(रिद्म-लय), Button (बट्न-बटन)। इन तीनों में दूसरे अक्षर में कोई स्वर नहीं है, अंत में ल्, म्, न्, व्यंजन हैं। ये तीनों अधिक मुखरता के साथ बोले जाते हैं, अत: ये स्वर के बराबर माने जाते हैं और आक्षरिक है। प्राचीन भारतीय वैयाकरणों ने संभवत: इसीलिए बलाघात को वहन करने और मुखरता के कारण र् और ल् को आक्षरिक मानते हुए इन्हें ऋ और लृ के रूप में स्वतन्त्र स्वर माना है।
आन्तरिक मुखरता के आधार पर सभी ध्वनियों को 8 आठ वर्ग में बाँटा गया है। इनमें क्रमशः बाद वाली ध्वनियाँ अधिक मुखर हैं-
1. कम मुखर अघोष ध्वनियाँ- स्पर्श क् ख् च् छ् त् थ् आदि।
2. अधिक मुखर सघोष ध्वनियाँ- ग् घ् द् ध् ब् भ् आदि।
3. अधिक मुखर नासिक्य और पाश्विक ध्वनियाँ- ङ् ण् न् म् ल् आदि।
4. अधिक मुखर लुठित ध्वनि- र्।
5. अधिक मुखर संवृत स्वर- इ, उ
6. अधिक मुखर अर्धसंवृत स्वर- एं, ओ
7. अधिक मुखर अर्धविवृत स्वर - ऍ, ओ ।
8. सबसे अधिक मुखर विवृत स्वर - आ ।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि अघोष ध्वनियों की अपेक्षा घोष ध्वनियाँ अधिक मुखर है। उनसे भी अधिक नासिक्य ध्वनियाँ और उनसे अधिक मुखर लुठित ध्वनि है। यह व्यंजन ध्वनियों की मुखरता का क्रम है। व्यंजनों से अधिक मुखर स्वर ध्वनियाँ है। उनका क्रम इस आधार पर है कि जो ध्वनि जितनी विवृत (मुखद्वार खुला) होती जाएगी, वह उतनी ही मुखर हो जायेगी । इस प्रकार पूर्णविवृत होने के कारण 'आ' ध्वनि सबसे अधिक मुखर है। इसी आधार पर गायक आ.... का आलाप करते हैं। (डॉ. कपिलदेव द्विवेदी, भाषाविज्ञान और भाषाशास्त्र) ।
अक्षर के भेद
अक्षरों को दो भागों में बाँटा जाता है-
(1) मुक्त अक्षर (open syllable)
(2) बद्ध अक्षर (Closed syllable)
1. मुक्त अक्षर (Open Syllable)
जब अक्षर की अंतिम ध्वनि स्वर होती हैं तब उसे मुक्त अक्षर कहते हैं, जैसे- गमन, भोजन, मान, दान, लेना देना आदि।
2. बद्ध अक्षर (Closed syllable)
जिसके अन्त में व्यञ्जन होता है, उन्हें बद्ध अक्षर कहते हैं, जैसे-वाक्, भगवत्, विद्वान्, धनवान् उठ्, घर् आदि।
हिन्दी भाषा में "उठ' 'घर' शब्द स्वरान्त लिखित रूप में है। किन्तु इनका उच्चारण हलन्त 'उठ्' घर्' के रूप में होता है और भाषाविज्ञान में उच्चरित रूप को लेकर विचार ज्यादा किया जाता है। अंग्रेजी की पुस्तकों में मुक्त अक्षर को V (Vowel, स्वर) के द्वारा और बद्ध अक्षर को C (Consonent, अर्थात् व्यञ्जन) के द्वारा सूचित किया जाता है, जैसे- पाठ- CVCV, वाक् – CVC ।
आगे पढ़े>>>बलाघात : अर्थ एवं प्रकार<<<
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