Secure Page

Welcome to My Secure Website

This is a demo text that cannot be copied.

No Screenshot

Secure Content

This content is protected from screenshots.

getWindow().setFlags(WindowManager.LayoutParams.FLAG_SECURE, WindowManager.LayoutParams.FLAG_SECURE); Secure Page

Secure Content

This content cannot be copied or captured via screenshots.

Secure Page

Secure Page

Multi-finger gestures and screenshots are disabled on this page.

getWindow().setFlags(WindowManager.LayoutParams.FLAG_SECURE, WindowManager.LayoutParams.FLAG_SECURE); Secure Page

Secure Content

This is the protected content that cannot be captured.

Screenshot Detected! Content is Blocked

ON SPOT$type=blogging$m=0$cate=0$sn=0$rm=0$c=2$va=0

Search This Blog

स्वर तथा व्यञ्जन ; अर्थ, एवं वर्गीकरण,भाषाशास्त्रियों के महाभाष्य सम्बन्धी मत का खण्डन

SHARE:

भाषा भाषा_विज्ञान वर्गीकरण ध्वनि बलाघात वैदिक _संस्कृत भाषा_उत्पत्ति भाषा_और_बोली ध्वनि_वर्गीकरण स्वर_व्यञ्जन अक्षर_ध्वनि भाषा_परिभाषा भाषा_परिवार

हम सबने >>>ध्वनि वर्गीकरण के सिद्धान्त एवं आधार<<< विषय पर चर्चा कर चुके हैं । अब हम सब >>>..........>>स्वर तथा व्यञ्जन ; अर्थ, भेद एवं वर्गीकरण<<<<<.......<<< पर बात करते हैं ।



स्वर और व्यञ्जन (Vowels and Consonents)


  ध्वनियों का सबसे प्राचीन और अभी तक प्रचलित वर्गीकरण स्वर और व्यञ्जन के नाम से मिलता है। भाष्यकार पतज्जलि स्वरों के विषय में कहते हैं- 'स्वयं राजन्ते इति स्वराः' (महाभाष्य 1/2/29) अर्थात् 'स्वर' वे ध्वनियाँ है, जो स्वयं उच्चरित होती हैं, स्वयं प्रकाशित होती है। उन्हें किसी के सहायता की आवश्यकता नहीं है। 'व्यञ्जन' उन ध्वनियों को कहते हैं, जिनका उच्चारण स्वरों की सहायता के बिना नहीं होता- "अन्वग् भवति व्यञ्जनम् (महाभाष्य- 1/2/30) । अर्थात् पतञ्जलि ने स्वरों को स्वतन्त्र सत्ता मानी है और व्यञ्जनों को उनके अधीनस्थ कार्यकर्ता माना है।

  किन्तु भाषावैज्ञानिक पतञ्जलि कृतं स्वर-व्यञ्जन की परिभाषा से सहमत नहीं है, उदाहरणार्थ- "संयुक्त', 'स्वर' और 'कार्त्स्न्य शब्द । 'संयुक्त' में 'क्त' का संयोग है अर्थात् क् में कोई स्वर नहीं है, फिर भी उसका उच्चारण होता है। इसी तरह 'स्वर' के स् में कोई स्वर नहीं है, फिर भी उसके उच्चारण में कोई अस्पष्टता नहीं है। 'काय' (अर्थात् सम्पूर्णता) में  र्, त्, स्, न्, - ये चार व्यज्जन बिना स्वर के है, फिर भी इनका उच्चारण स्पष्टता से किया जाता है। इससे सिद्ध है कि व्यञ्जन के उच्चारण में स्वर की सहायता अनिवार्य नहीं है।

नोट-  

यहाँ ध्यातव्य है कि "अन्वग् भवति व्यञ्जनम् (महाभाष्य- 1/2/30) ।  महाभाष्य का अध्ययन शायद ठीक ढंग से नहीं किया । महाभाष्य का सूत्र है -'स्वयं राजन्ते इति स्वराः' (महाभाष्य 1/2/29) । राजन्ते प्रकाशन्ते इति स्वराः अर्थात् जो स्वयं प्रकाशमान हैं वो स्वर हैं । महाभाष्य के अनुसार स्वतन्त्र रूप से उच्चरित होते हैं, उन्हें स्वर कहते हैं, जैसे अ,इ,उ आदि । व्यञ्जन  का लक्षण करते हुए महर्षि पतञ्जलि कहते हैं- "अन्वग् भवति व्यञ्जनम् (महाभाष्य- 1/2/30) अर्थात् किसी वर्ण का अनुगमन करने वाले वर्ण व्यञ्जन कहलाते हैं । जैसे - क,ख इत्यादि । भाषाशास्त्रियों ने महाभाष्य का कथन यह कहकर खण्डित कर दिया कि व्यञ्जन भी स्वर के बिना उच्चरित हो सकते हैं,उदाहरणार्थ - संयुक्त, स्वर, कार्त्स्न्य आदि । परन्तु वे यह नहीं समझ पा रहे कि क्त, में क् का उच्चारण हो रहा है पर स्वतन्त्र नहीं, वह तो अकार स्वर सहित त का अनुगामी है, ऐसा ही स्व है यहां स् अकार स्वर सहित व का अनुगामी है ।  इसीलिए महामुनि पाणिनि ने कहा - हकारादिष्वकारः उच्चारणार्थः अर्थात् माहेश्वर सूत्रों में आये हुए हकारादि वर्णों में आगत अकार उच्चारणार्थ है । अतः स्पष्ट होता है कि व्यञ्जन स्वतन्त्र होकर उच्चरित नहीं हो सकते हैं तथा भाषाशास्त्रियों द्वारा किया गया खण्डन तर्कहीन एवं निराधार है ।


 आधुनिक भाषाविज्ञान की दृष्टि से स्वर और व्यञ्जन की परिभाषा 


 'स्वर' वे ध्वनियाँ है, जिनका उच्चारण करते समय निःश्वास में कहीं कोई अवरोध नहीं होता। 'व्यञ्जन' वे ध्वनियाँ हैं जिनका उच्चारण करते समय निःश्वास में कहीं-न-कहाँ अवरोध होता है।

स्वर और व्यंजन की विस्तृत परिभाषा ब्लॉख और ट्रैगर ने इस प्रकार दी है-

स्वर की परिभाषा

 स्वर, उन ध्वनियों का कहते हैं, जो मुख में किसी प्रकार अवरुद्ध हुए बिना उच्चरित होते हैं। फेफड़ों से आने वालों वायु ओष्ठ और उससे आगे तक कहीं अवरूद्ध नहीं होती। इसको कहीं बहुत संकीर्ण मार्ग से नहीं निकलना पड़ता है। यह मुख-विवर की स्वर-सीमा से ऊपर नहीं जाती है और इसमें स्वरतंत्री से ऊपर वाले किसी वाग्-अवयव में कम्पन नहीं होता है। साधारणतया घोष ध्वनि होती है। परन्तु ऐसा अनिवार्य नहीं है ।

  A Vowel, is a sound for whose production the oral passage is unobstructed, so that the air current can flow from the lungs to the lips and beyond without being stopped, without having to squeeze through a narrow constriction, without being deflected from the median line of its channel, and without causing any of the supraglottal organs to vibrate, it is typically but not necessarily voiced.(outlines of linguistic analysis, p. 18)

व्यञ्जन की परिभाषा

  व्यञ्जन वह ध्वनि है, जिसके उच्चारण में फेफड़ों से आने वाली वायु स्वरतंत्री या मुखमार्ग में कहीं पूर्णत: रोकी जाती है, या अत्यन्त संकुचित मार्ग से निकलती है, या मुख-विवर स्वर-सीमा से हटते हुए जिह्वा के एक या दोनों ओर से निकलती है या स्वरतंत्री से ऊपर वाले किसी वाग् अवयव में कम्पन पैदा करती है। "

     'A Consonant, Conversely,       is a sound for whose production the air current is completely stopped by an occlusion of the larynx or the oral passage. Or is forced to squeeze through a narrow constriction, or is deflected from the median line of its channel through a lateral opening, or causes one of the supraglottal organs to vibrate. (outlines of linguistic analysis, p. 18)

स्वर और व्यञ्जन में अन्तर

     स्वर और व्यञ्जन की परिभाषा में विशेष अन्तर यह बताया गया है कि स्वर के उच्चारण में वायु मुखविवर में अबाध रहती है अर्थात् स्वरोच्चारण करते समय निःश्वास में कहीं कोई अवरोध नहीं होता। किन्तु व्यञ्जन के उच्चारण में वायु मुखविवर में सबाध रहती है अर्थात् व्यञ्जन का उच्चारण करते समय निःश्वास में कहीं-न-कहीं अवरोध होता है। स्वर और व्यञ्जन में दूसरा भेद यह है कि दोनों की मुखरता (Sonority) में अन्तर होता है। जो ध्वनि अधिक दूर तक सुनाई देती है वह उतनी अधिक मुखर मानी जाती है। सामान्य एवं वैज्ञानिक परीक्षणों से यह सिद्ध हो चुका है कि व्यंजनों की अपेक्षा स्वर अधिक मुखर होते हैं। अतएव संगीतज्ञ साधना के समय आलाप में क... का आलाप न
करके अ...........अ आलाप करते हैं। मुखरता की दृष्टि से स्वरों और व्यञ्जनों का निम्नलिखित क्रम माना जाता है। इसमें उत्तरोत्तर अधिक मुखर ध्वनियों का उल्लेख है-

1. अत्यल्प मुखर अघोष ध्वनियाँ- क, त, प

2. इससे अधिक मुखर सघोष ध्वनियाँ - ग, द, ब

3. इससे अधिक मुखर नासिक्य एवं पार्श्विक ध्वनियाँ- ङ, ञ, म, न, ल ।

4. इससे अधिक मुखर लुंठित ध्वनि- र।

5. इससे अधिक मुखर संवृत स्वर ध्वनियाँ - ई, ऊ ।

6. इससे अधिक मुखर विवृत ध्वनि- आ


आक्षरिक ध्वनियाँ

 प्रो. हेफ्नर (Prof. Heffner, R. M.S.) ने मुखरता को आधार बनाकर ध्वनियों को दो भागों में विभक्त किया है- 
(1) आक्षरिक
(2) अनाक्षरिक ।
 ये वर्णों (ध्वनियों या अक्षरों) का विभाजन स्वर और व्यञ्जन के रूप में न करके आक्षरिक और अनाक्षरिक नाम से करना ज्यादा उपयुक्त समझते हैं। उनके अनुसार इनकी परिभाषा इस प्रकार है-

आक्षरिक (Syllabic)

 जो ध्वनियाँ बलाघात (Siress) को वहन कर सकती है वे आक्षरिक हैं, जैसे- स्वर ध्वनियाँ बलाघात को वहन करती हैं। सामान्यतया ध्वनि के उच्चारण में स्वरों पर ही बलाघात किया जाता है।

 अनाक्षरिक (Non- Syllabic)

 जो ध्वनियाँ बलाघात को वहन नहीं कर सकती हैं, वे अनाक्षरिक हैं, जैसे- व्यञ्जन ध्वनियाँ- कुछ भाषाओं में कतिपय व्यञ्जजन ध्वनियाँ भी आक्षरिक होती हैं, जैसे- संस्कृत में 'र' और 'ल' ध्वनि। अंग्रेजी भाषा के कुछ शब्दों में L M N ध्वनि भी आक्षरिक है। इसी प्रकार चेक और पुरानी सूडानी भाषाओं में R ध्वनि आक्षरिक है। ब्लाख और ट्रैगर के अनुसार उच्च स्वरों की अपेक्षा निम्न स्वरों की श्रव्यता अधिक स्पष्ट होती है। इसी प्रकार व्यञ्जनों की अपेक्षा स्वरों की श्रव्यता अधिक होती है। इसी श्रव्यता की मुखरता के आधार पर आक्षरिक ध्वनियों की गणना एवं उनका वर्णन प्रो. ब्लाख और ट्रैगर ने किया है। (B. Bloch and G. Trager: An outline of Linguistic Analysis, P. 22)

स्वरों का वर्गीकरण


स्वर-ध्वनियों में जो भेद दिखाई पड़ता है, उसके अनेक कारण हैं-

(1) जिह्वा की ऊँचाई।

(2) जिह्वा का उत्थापित भाग।

(3) ओष्ठों की स्थिति ।

  स्वर की परिभाषा में कहा गया है कि नि:श्वास में बिना अवरोध के जो ध्वनियाँ उत्पन्न होती हैं, वे 'स्वर' कहलाती हैं, अर्थात्- निःश्वास वायु बिना किसी अवरोध या बाधा के मुख-विवर से बाहर निकल जाती है। फिर अ, इ, उ, ए, ओ आदि का भेद कैसे हो सकता है? इस भेद के जनक उपर्युक्त तीनों कारण हैं।

(क) जिह्वा की ऊँचाई के अनुसार


  निःश्वास वायु जब मुख विवर से बाहर निकलती है, तो उसमें अवरोध तो नहीं किया जाता, किन्तु जिह्वा को ऊपर उठाकर निःश्वास के निर्गम मार्ग को कुछ संकीर्ण अवश्य कर दिया जाता है। यह संकीर्णता कहीं अपेक्षाकृत कम होती है और कहीं अधिक। इस दृष्टि से मुखविवर की स्थिति चार प्रकार की होती है और उसके अनुसार स्वरों के भी चार भेद हो जाते हैं-
स्वर और व्यज्जन
1. विवृत, 2. अर्धविवृत 3. अर्धसंवृत, 4. संवृत ।

1. विवृत

 विवृत का अर्थ है खुला हुआ। जब जिहा और मुख विवर के उपरिभाग के बीच अधिकाधिक दूरी रहती है तो विवृत ध्वनियाँ उत्पन्न होती हैं, जैसे- 'आ'।

2. अर्धविवृत

 अर्धविवृत में विवृत की अपेक्षा जिह्वा और मुखविवर के उपरिभाग की दूरी थोड़ी कम हो जाती है। अर्धविवृत स्वरों के उदाहरण हैं- ऐ, औ

 3. अर्ध संवृत

 जब संवृत की अपेक्षा जिह्वा और मुखविवर के उपरिभाग की दूरी अधिक रहती है, तो अर्धसंवृत ध्वनियाँ उत्पन्न होती हैं, जैसे- ए, ओ।

4. संवृत

  जिह्वा और मुखविवर के उपरिभाग के बीच कम-से-कम दूरी रहने पर जिन ध्वनियों का उच्चारण होता है, उन्हें संवृत कहते हैं, जैसे- इ, ई, उ, ऊ।

(ख) जिह्वा के उत्थापित भाग के अनुसार

व्यावहारिक दृष्टि से जिह्वा के अनेक भाग हैं, जैसे- अग्र, मध्य और पश्च। इनमें जो भाग ऊपर उठकर निःश्वास के निर्गम मार्ग को संकीर्ण या परिवर्तित करता है, उसके अनुसार स्वरों का भेद हो जाता है।

1. जिह्वा के अग्रभाग को उठाकर जिन स्वरों का उच्चारण होता है वे हैं- इ, ई. ए. ऐ। इसी से इन्हें 'अग्रस्वर' कहते हैं।

2. जिह्वा के मध्यभाग को उठाकर केन्द्रीय स्वर का उच्चारण होता है, जिसका उदाहरण है- 'अ'।

3. जिह्वा के पश्चभाग को उठाकर अ उ ऊ ओ औ का उच्चारण होता है। जिन्हें पश्च स्वर कहते हैं।

स्पष्ट है कि अग्र, पश्च आदि का विभाजन जिह्वा के तत्तत् भाग से सम्बद्ध है, जहाँ जिह्वाग्र से काम लेते हैं, वहाँ अग्रस्वर और जहाँ जिह्वापश्च से काम लेते हैं वहाँ पश्चस्वर ।

 (ग) ओष्ठों की स्थिति के अनुसार


   उच्चारण में जिह्वा के साथ ओष्ठ का भी योगदान होता है। ओष्ठों की स्थिति अनेक प्रकार की होती है। जिनमें मुख्य निम्नलिखित हैं -

1. प्रसृत

 ओष्ठों की प्रसृत स्थिति वह है जिसमें वे स्वाभाविक रूप से स्थित रहते हुए खुले होते हैं, इस स्थिति को अंग्रेजी में 'फ्लैट' कहते हैं। इ, ई. ए, ऐ का उच्चारण ओष्ठों की प्रसृत स्थिति में ही होता है।

2. वर्तुल

 ओष्ठों को थोड़ा आगे निकालकर जब गोलाकार कर लेते हैं, तो वह वर्तुल स्थिति है। उ ऊ ओ औ के उच्चारण में वर्तुल स्थिति सहायक होती है।

3. अर्धवर्तुल

 पूरा गोलाकार न होकर जब ओष्ठ आधे गोलाकार होते हैं, तो कुछ स्वरों का उच्चारण होता है, जैसे- आ ।


वाग्यन्त्र



1. नासिकाछिद्रा
2. ओष्ठ
3. दन्त
4. वर्त्स
5. मूर्धा
6. कठोरतालु
7. कोमलतालु
8. अलिजिह्वा (काकल)
9. जिह्माणि
10. जिह्वाग्र
11. जिह्वामध्य
12. जिह्वापश्च
13. कंठच्छद (एपिग्लॉटिस)
14. ग्रसनिका (फ़ैरिंक्स)
15. स्वरतन्त्री (व्होकल कॉर्ड) 
16. स्वरयन्त्र (लैरिंक्स)
17. श्वासनली (विंड, पाइप)
18. ग्रासनली (गलेट)


व्यञ्जनों का वर्गीकरण


    स्थान के आधार पर व्यञ्जनों के कण्ठ्य, तालव्य, मूर्धन्य आदि भेद पूर्व (ध्वनि वर्गीकरण के सिद्धान्त एवं आधार) में बताया जा चुका है। आभ्यन्तर प्रयत्न के आधार पर व्यञ्जनों के निम्नलिखित भेद है-

1. स्पर्श
2. स्पर्श-संघर्षी
3. संघर्षी
4. पार्श्विक
5. लोड़ित 
6. उत्क्षिप्त
7. अन्तःस्थ या अर्धस्वर 
8. अनुनासिक 

1. स्पर्श

  स्पर्श उन ध्वनियों को कहते हैं, जिनमें जिला का मुखविवर के उपरिभाग से कहीं-न-कहीं स्पर्श होता है। इस दृष्टि से कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, और पवर्ग स्पर्श ध्वनियाँ है।

2. स्पर्श-संघर्षी

  स्पर्शसंघर्षी ध्वनियों के उच्चारण में स्पर्श के साथ निःश्वास वायु के निर्गम में हल्का सा संघर्षण भी होता है। इसलिए इन ध्वनियों को स्पर्श-संघर्षी कहते हैं। कुछ भाषाविज्ञानी हिन्दी की च, छ, ज, इन ध्वनियों को स्पर्श-संघर्षी मानते हैं। पर ये वस्तुत: स्पर्श-संघर्षी न होकर स्पर्श ही है। स्पर्श-संघर्षी के उदाहरण होंगे- याच्ञा और ज्येष्ठ के च्ञा और ज्ये, जिनके उच्चारण में स्पर्श के साथ घर्षण भी होता है। संस्कृत के 'पच्यते' शब्द में'च्य' स्पर्श-संघर्षो का उदाहरण है। ग्लीसन महोदय(An Introduction to Descriptive Linguistics, P. 335)ने भी हिन्दी की च, छ, ज, झ, ध्वनियों को स्पर्श हो माना है, स्पर्श-संघर्षी नहीं।

3. संघर्षी

 संघर्षी ध्वनियों में निःश्वास वायु के निर्गम का मार्ग जिह्वा के द्वारा अत्यन्त संकीर्ण कर दिया जाता है और वायु रगड़ खाकर बाहर निकलती है। रगड़ या संघर्ष की प्रधानता के कारण ही इन ध्वनियों को संघर्षी कहते हैं, जिसके उदाहरण है- श, ष, स ।

4. पार्श्विक

 पार्श्विक ध्वनि के उच्चारण में जिह्वा की नोक मूर्धा को छूती है और निःश्वास वायु दोनों पाश्चों से बाहर निकलती है। पाश्विक का उदाहरण है- ल ।

5. लोड़ित

 लोड़ित ध्वनियों के उच्चारण में जिह्वा की नोक वर्त्स पर एक या अनेक बार ठोकर मारती है। 'र' लोड़ित ध्वनि है।

 6. उत्क्षिप्त

 उत्क्षिप्त उन ध्वनियों को कहते हैं, जिनके उच्चारण में जिह्वा तालु के किसी भाग को झटके से मारकर हट जाती है। जैसे- ड ढ़।

7. अन्तःस्थ या अर्धस्वर

 अन्तःस्थ (अर्धस्वर) वे ध्वनियाँ हैं, जिनके उच्चारण में जिहा से न तो पूरी तरह स्पर्श होता है और न स्वरों के उच्चारण के समान पार्थक्य ही रहता है। 'य' का उच्चारण करने के लिए जिह्वा के अग्रभाग को कठोर तालु की और उठाते हैं पर तालु का स्पर्श नहीं करते। इसी तरह 'व' का उच्चारण करते समय दोनों ओष्ठ पास आ जाते हैं पर एक-दूसरे का स्पर्श नहीं करते हैं। य, व में स्वर और व्यञ्जन दोनों का वैशिष्ट्य रहने से इन्हें अन्तःस्थ या अर्धस्वर कहते हैं।

8. अनुनासिक

  ध्वनियों के उच्चारण में निःश्वास वायु मुखविवर के साथ नासिका विवर से भी निकलती है। नागरी वर्णमाला में वर्गाक्षरों के अन्तिम अक्षर (ङ् ञ, ण, न, म्) अनुनासिक के उदाहरण हैं। पाणिनीय शिक्षा में ध्वनियों के वर्गीकरण के पाँच आधार बताये गये हैं- स्वर, काल, स्थान, प्रयत्न और अनुप्रदान ।

 तेषां विभागः पञ्चधा स्मृतः ।
स्वरतः  कालत: स्थानात् प्रयत्नानुप्रदानतः ।।
- (पाणिनीय शिक्षा 9-10)

   स्थान का विवेचन>>> ध्वनि वर्गीकरण के सिद्धान्त एवं आधार<<< में हो चुका है। प्रयत्न शब्द से यहाँ आभ्यन्तर प्रयत्न अभिमत है और अनुप्रदान से वाह्य प्रयत्न आभ्यन्तर प्रयत्न की चर्चा अभी की गई है। बाह्य प्रयत्न का संक्षिप्त विवरण भी (ध्वनि वर्गीकरण के सिद्धान्त और आधार ) में दिया गया है। स्वर और काल के सम्बन्ध में संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-

काल (मात्रा)


    काल का वह अंश, जो किसी ध्वनि के उच्चारण में लगता है, मात्रा कहलाता है। संस्कृत में तीन मात्राएँ मानी गई हैं- ह्रस्व, दीर्घ और प्लुत।

1. 'ह्रस्व' - एकमात्रिक
2.'दीर्घ' - द्विमात्रिक
3.'प्लुत'- त्रिमात्रिक  
 अर्थात् 'ह्रस्व' का दूना समय दीर्घ के उच्चारण में और ह्रस्व का तिगुना समय प्लुत के उच्चारण में लगता है। मात्राकृत यह भेद बहुत कुछ स्थूल है। सामान्यतः आधी मात्रा का उल्लेख नहीं मिलता, किन्तु व्यावहारिक रूप में आधी मात्रा पर्याप्त रूप से पायी जाती है। 'अल्प',' वित्त',' जन्म' आदि शब्दों में ल् त् न् का उच्चारण आधा ही होता है। भारत के प्राचीन ध्वनि-विज्ञानी इससे अपरिचित नहीं थे, जैसे 'तस्यादित उदात्तमर्द्धह्रस्वम्' (अष्टाध्यायी- 1/2/32) अथवा 'अर्धमात्रालाघवं पुत्रोत्सवं मन्यन्ते वैयाकरणा:' वाली प्रसिद्ध उक्ति से स्पष्ट है। यदि अधिक सूक्ष्मता से विचार किया जाए तो ध्वनियों के उच्चारण में चौथाई मात्रा का प्रयोग भी पाया जा सकता है, जैसे- कुम्हार 'शब्द' में 'म्'।

अगली पोस्ट में देखें>>>ध्वनि परिवर्तन के कारण और दिशाएँ<<<

और पढ़ें-


COMMENTS

BLOGGER

POPULAR POSTS$type=three$author=hide$comment=hide$rm=hide

TOP POSTS (30 DAYS)$type=three$author=hide$comment=hide$rm=hide

Name

about us,2,AKTU,1,BANK EXAM,1,Best Gazzal,1,bhagwat darshan,3,bhagwatdarshan,2,birthday song,1,BPSC,2,CBSE,2,computer,40,Computer Science,41,contact us,1,COURSES,1,CPD,1,darshan,16,Download,4,DRDO,1,EXAM,1,Financial education,2,Gadgets,1,GATE,1,General Knowledge,34,JEE MAINS,1,Learn Sanskrit,3,medical Science,1,Motivational speach,1,PAPER I,4,POINT I,4,poojan samagri,4,Privacy policy,1,psychology,1,RECRUITMENT,9,Research techniques,41,RESULT,2,RPSC,1,RSMSSB,1,Science,1,solved question paper,3,sooraj krishna shastri,6,Sooraj krishna Shastri's Videos,60,SPORTS,4,SSC,1,SYLLABUS,1,TGT,1,UGC NET/JRF,6,UKPSC,1,UNIT I,4,University,1,UP PGT,1,UPSC,2,World News,1,अध्यात्म,202,अनुसन्धान,25,अन्तर्राष्ट्रीय दिवस,10,अभिज्ञान-शाकुन्तलम्,5,अष्टाध्यायी,1,आओ भागवत सीखें,16,आज का समाचार,46,आधुनिक विज्ञान,22,आधुनिक समाज,153,आयुर्वेद,49,आरती,8,ईशावास्योपनिषद्,21,उत्तररामचरितम्,35,उपनिषद्,34,उपन्यासकार,1,ऋग्वेद,16,ऐतिहासिक कहानियां,4,ऐतिहासिक घटनाएं,16,कथा,6,कबीर दास के दोहे,1,करवा चौथ,1,कर्मकाण्ड,123,कादंबरी श्लोक वाचन,1,कादम्बरी,2,काव्य प्रकाश,1,काव्यशास्त्र,32,किरातार्जुनीयम्,3,कृष्ण लीला,2,केनोपनिषद्,10,क्रिसमस डेः इतिहास और परम्परा,9,खगोल विज्ञान,3,गजेन्द्र मोक्ष,1,गीता रहस्य,2,ग्रन्थ संग्रह,1,चाणक्य नीति,2,चार्वाक दर्शन,4,चालीसा,6,जन्मदिन,1,जन्मदिन गीत,1,जयंती,1,जयन्ती,4,जीमूतवाहन,1,जैन दर्शन,3,जोक,6,जोक्स संग्रह,5,ज्योतिष,52,तन्त्र साधना,2,दर्शन,36,देवी देवताओं के सहस्रनाम,1,देवी रहस्य,1,धर्मान्तरण,5,धार्मिक स्थल,50,नवग्रह शान्ति,3,नीतिशतक,27,नीतिशतक के श्लोक हिन्दी अनुवाद सहित,7,नीतिशतक संस्कृत पाठ,7,न्याय दर्शन,18,परमहंस वन्दना,3,परमहंस स्वामी,2,पारिभाषिक शब्दावली,1,पाश्चात्य विद्वान,1,पुराण,1,पूजन सामग्री,7,पूजा विधि,2,पौराणिक कथाएँ,69,प्रत्यभिज्ञा दर्शन,1,प्रश्नोत्तरी,32,प्राचीन भारतीय विद्वान्,100,बर्थडे विशेज,5,बाणभट्ट,1,बौद्ध दर्शन,1,भगवान के अवतार,4,भजन कीर्तन,39,भर्तृहरि,18,भविष्य में होने वाले परिवर्तन,12,भागवत,4,भागवत : गहन अनुसंधान,29,भागवत अष्टम स्कन्ध,28,भागवत अष्टम स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत एकादश स्कन्ध,31,भागवत एकादश स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत कथा,136,भागवत कथा में गाए जाने वाले गीत और भजन,7,भागवत की स्तुतियाँ,4,भागवत के पांच प्रमुख गीत,6,भागवत के श्लोकों का छन्दों में रूपांतरण,1,भागवत चतुर्थ स्कन्ध,31,भागवत चतुर्थ स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत तृतीय स्कंध(हिन्दी),13,भागवत तृतीय स्कन्ध,33,भागवत दशम स्कन्ध,91,भागवत दशम स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत द्वादश स्कन्ध,13,भागवत द्वादश स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत द्वितीय स्कन्ध,10,भागवत द्वितीय स्कन्ध(हिन्दी),10,भागवत नवम स्कन्ध,38,भागवत नवम स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत पञ्चम स्कन्ध,26,भागवत पञ्चम स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत पाठ,58,भागवत प्रथम स्कन्ध,22,भागवत प्रथम स्कन्ध(हिन्दी),19,भागवत महात्म्य,3,भागवत माहात्म्य,18,भागवत माहात्म्य स्कन्द पुराण(संस्कृत),2,भागवत माहात्म्य स्कन्द पुराण(हिन्दी),2,भागवत माहात्म्य(संस्कृत),2,भागवत माहात्म्य(हिन्दी),9,भागवत मूल श्लोक वाचन,55,भागवत रहस्य,55,भागवत श्लोक,7,भागवत षष्टम स्कन्ध,19,भागवत षष्ठ स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत सप्तम स्कन्ध,15,भागवत सप्तम स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत साप्ताहिक कथा,9,भागवत सार,35,भारतीय अर्थव्यवस्था,15,भारतीय इतिहास,21,भारतीय उत्सव,3,भारतीय दर्शन,5,भारतीय देवी-देवता,8,भारतीय नारियां,3,भारतीय पर्व,55,भारतीय योग,3,भारतीय विज्ञान,38,भारतीय वैज्ञानिक,2,भारतीय संगीत,2,भारतीय सम्राट,3,भारतीय संविधान,1,भारतीय संस्कृति,4,भाषा विज्ञान,16,मनोविज्ञान,4,मन्त्र-पाठ,8,मन्दिरों का परिचय,1,महा-शिव-रात्रि व्रत,5,महाकुम्भ 2025,7,महापुरुष,46,महाभारत रहस्य,35,महीसुर -महिमा -माला,4,मार्कण्डेय पुराण,1,मुक्तक काव्य,19,यजुर्वेद,3,युगल गीत,1,योग दर्शन,1,रघुवंश-महाकाव्यम्,5,राघवयादवीयम्,1,रामचरितमानस,5,रामचरितमानस की विशिष्ट चौपाइयों का विश्लेषण,129,रामायण के चित्र,19,रामायण रहस्य,65,राष्ट्रीय दिवस,6,राष्ट्रीयगीत,1,रील्स,7,रुद्राभिषेक,1,रोचक कहानियाँ,157,लघुकथा,38,लेख,184,वास्तु शास्त्र,14,वीरसावरकर,1,वेद,3,वेदान्त दर्शन,9,वैदिक कथाएँ,38,वैदिक गणित,2,वैदिक विज्ञान,2,वैदिक संवाद,23,वैदिक संस्कृति,33,वैशेषिक दर्शन,13,वैश्विक पर्व,10,व्रत एवं उपवास,41,शायरी संग्रह,4,शिक्षाप्रद कहानियाँ,128,शिव रहस्य,2,शिव रहस्य.,5,शिवमहापुराण,14,शिशुपालवधम्,2,शुभकामना संदेश,7,श्राद्ध,1,श्रीमद्भगवद्गीता,23,श्रीमद्भागवत महापुराण,17,सनातन धर्म,4,सरकारी नौकरी,11,सरस्वती वन्दना,1,संस्कृत,11,संस्कृत काव्य पाठ,1,संस्कृत गीतानि,37,संस्कृत बोलना सीखें,13,संस्कृत में अवसर और सम्भावनाएँ,6,संस्कृत व्याकरण,26,संस्कृत श्लोक,18,संस्कृत साहित्य,13,संस्कृत: एक वैज्ञानिक भाषा,1,संस्कृत:वर्तमान और भविष्य,6,संस्कृतलेखः,2,सांख्य दर्शन,6,साहित्यदर्पण,23,सुभाषितानि,26,सुविचार,23,सूरज कृष्ण शास्त्री,455,सूरदास,1,स्तोत्र पाठ,62,स्वास्थ्य और देखभाल,8,हमारी प्राचीन धरोहर,1,हमारी विरासत,7,हमारी संस्कृति,105,हँसना मना है,6,हिन्दी रचना,34,हिन्दी साहित्य,5,हिन्दू तीर्थ,3,हिन्दू धर्म,4,होली पर्व,1,
ltr
item
भागवत दर्शन: स्वर तथा व्यञ्जन ; अर्थ, एवं वर्गीकरण,भाषाशास्त्रियों के महाभाष्य सम्बन्धी मत का खण्डन
स्वर तथा व्यञ्जन ; अर्थ, एवं वर्गीकरण,भाषाशास्त्रियों के महाभाष्य सम्बन्धी मत का खण्डन
भाषा भाषा_विज्ञान वर्गीकरण ध्वनि बलाघात वैदिक _संस्कृत भाषा_उत्पत्ति भाषा_और_बोली ध्वनि_वर्गीकरण स्वर_व्यञ्जन अक्षर_ध्वनि भाषा_परिभाषा भाषा_परिवार
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEioThSRETvQa2cEMw5SLHFTv0dnzkM2dQhyyXqp-hcOs6G9ZtlCVqw8JkGmvJivDNpIm8Yf2Lip6BIdOrp_eEwM4mH89uHx4YKYgJJZaL4cSlfhpnByMVX1V3rDnQ9dP-8u86fzpzUIKLEcmiZhrsjZAixgEsr_h1hFjBg4dGQ4e33mG3ePNg1Lw29X/s320/Screenshot_2022-10-03-16-29-03-661_com.camerasideas.instashot.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEioThSRETvQa2cEMw5SLHFTv0dnzkM2dQhyyXqp-hcOs6G9ZtlCVqw8JkGmvJivDNpIm8Yf2Lip6BIdOrp_eEwM4mH89uHx4YKYgJJZaL4cSlfhpnByMVX1V3rDnQ9dP-8u86fzpzUIKLEcmiZhrsjZAixgEsr_h1hFjBg4dGQ4e33mG3ePNg1Lw29X/s72-c/Screenshot_2022-10-03-16-29-03-661_com.camerasideas.instashot.jpg
भागवत दर्शन
https://www.bhagwatdarshan.com/2021/12/blog-post_25.html
https://www.bhagwatdarshan.com/
https://www.bhagwatdarshan.com/
https://www.bhagwatdarshan.com/2021/12/blog-post_25.html
true
1742123354984581855
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content