वैदिक वर्ण व्यवस्था में शूद्र

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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वैदिक वर्ण व्यवस्था के अनुसार शूद्र



वैदिक वर्ण व्यवस्था में शूद्र किसे माना गया है ? 

"शोचनीयः शोच्यां स्थितिमापन्नो वा सेवायां साधुर अविद्यादिगुणसहितो मनुष्यो वा"

   अर्थात शूद्र वह व्यक्ति होता है जो अपने अज्ञान के कारण किसी प्रकार की उन्नत स्थिति को प्राप्त नहीं कर पाया और जिसे अपनी निम्न स्थिति होने की तथा उसे उन्नत करने की सदैव चिंता बनी रहती है अथवा स्वामी के द्वारा जिसके भरण पोषण की चिंता की जाती है | 

शूद्रेण हि समस्तावद् यावत् वेदे न जायते।

अर्थात जब तक कोई वेदाध्ययन नहीं करता तब तक वह शूद्र के सामान है वह चाहे किसी भी कुल में उत्पन्न हुआ हो ! 

"जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् द्विज उच्यते"

 अर्थात प्रत्येक मनुष्य चाहे किसी भी कुल में उत्पन्न हुआ हो वह जन्म से शूद्र ही होता है ! उपनयन संस्कार में दीक्षित होकर विद्याध्ययन करने के बाद ही द्विज बनता है ! 

जो मनुष्य अपने अज्ञान तथा अविद्ध्या के कारण किसी प्रकार की उन्नत स्थिति को प्राप्त नहीं कर पाता वह शूद्र रह जाता है।

 महर्षि मनु ने शूद्र के कर्म इस प्रकार बताये हैं

एकमेव तु शूद्रस्य प्रभु: कर्म समादिशत।

एतेषामेव वर्णानां शुश्रूषामनसूयया।।

अर्थात परमात्मा ने शूद्र वर्ण ग्रहण करने वाले व्यक्तियों के लिए एक ही कर्म निर्धारित किया है वो यह है कि अन्य तीनों वर्णों के व्यक्तियों के यहाँ सेवा या श्रम का कार्य करके जीविका करना ! क्योंकि अशिक्षित व्यक्ति शूद्र होता है अतः वह सेवा या श्रम का कार्य ही कर सकता है इसलिए उसके लिए यही एक निर्धारित कर्म है ! 

अब यदि कोई यह कुतर्क दे कि शूद्र को सेवा कार्य क्यों दिया उसे अन्य कार्य क्यों नहीं दिया, यह तो शूद्र के साथ पक्षपात है;    तो विचार कीजिये कि शूद्र कहा किसे है ? उपरोक्त वर्णन से यह स्पष्ट है कि शूद्र वह व्यक्ति होता है जो अशिक्षित एवं अयोग्य होता है| जो अशिक्षित व अयोग्य है क्या उसे सेवा के अलावा अन्य कोई जिम्मेदारी दी जा सकती है ? आधुनिक प्रशासन व्यवस्था में भी चार वर्ग निश्चित किये गए हैं –

  प्रथम श्रेणी, द्वितीय श्रेणी, तृतीय श्रेणी और चतुर्थ श्रेणी....

  यदि कुतर्क की दृष्टि से सोचा जाये तो यह भारत सरकार का चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के साथ पक्षपात है; सरकार को हर अशिक्षित व्यक्ति को डॉक्टर, इंजीनियर और जज बना देना चाहिए | अब जरा विचार कीजिये कि यदि अशिक्षित व्यक्ति डॉक्टर बना दिया जाए तो वह कैसा इलाज करेगा ? अशिक्षित व्यक्ति को जज बना दिया जाए तो वह कैसा फैसला सुनाएगा ? इसलिए वैदिक वर्ण व्यवस्था में कर्म एवं योग्यतानुसार ही वर्ण निर्धारण किया गया है क्योंकि व्यक्ति योग्यतानुसार ही अपना अपना कार्य ठीक से कर सकता है! 

इसीलिए यह कहावत है कि -

जिसका काम उसी को साजे!

दूजा करे तो डंडा बाजे!!

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