swami paramhans ji maharaj |
ब्रह्मर्षि तुम्हें शत्-शत् प्रणाम
प्रो० दीनानाथ शुक्ल 'दीन'
जय परमहंस टीकरमाफी, ब्रह्मर्षि तुझे शत्-शत् प्रणाम।।
जहँ तोते वेदमन्त्र पढ़ते, मैना कहती बस राम-राम।
गायें गीता का सार कहें, बछड़े बोलें हर, विष्णु, श्याम ।।
जय परमहंस आश्रम पुनीत, जय हे भक्तों के परमधाम।
जिनके पूजन अभिनन्दन से पूरन होते है सभी काम।।
प्रहरी चैतन्य हरी जिसका, जिसका गुन वैसा, रहा नाम।
जय परमहंस टीकरमाफी, ब्रह्मर्षि तुझे शत्-शत् प्रणाम।।
दर्शन, अध्यात्म, संस्कृति का जिस थल पर परचम लहराया।
वन्दित थे श्रीमत्परमहंस आश्रम पर थी उनकी छाया।।
दैहिक दैविक भौतिक सारे, त्रयताप न कोई भी धारे।
जो दीन-हीन असहाय रहे, वे हुए सनाथित जगन्यारे ।।
जो जन चाहा, वैभव पाया, आरोग्य हुआ जग हुआ नाम
जय परमहंस टीकरमाफी, ब्रह्मर्षि तुझे शत्-शत् प्रणाम।।
तपसी अथवा हो रंक-भूप, सब पाया जीवन दान यहाँ।
नव आस मिली. विश्वास मिला. नवशक्ति मिली सम्मान जहाँ।।
त्यागा हिंषक-शोषण वृत्ती, होता है सेवा भाव यहाँ।
उर-सिंधु ज्वार भक्ती का हो, छल-दम्भ रहे फिर वहाँ कहीं।
यह दीन हीन तव चरन शरन, बलबुद्धि हीन है नहीं दाम
जय परमहंस टीकरमाफी, ब्रह्मर्षि तुझे शत्-शत् प्रणाम।
गुरु ज्ञानानन्द रहे जिनके पितु रामानन्द, मातु मैना
सुत रहे द्वारिका परमधीर, तप किया दिवस हो या रैना।।
उपनिषद, व्याकरण, ज्योतिष पढ़ वेदान्त वेद, दर्शन भाये।
उर व्योम धर्म की थी ज्वाला जग प्रेम सुधा रस बरसाये।
वैराग्य हुआ गृह त्याग किया, उस तपी वीर का क्या कहना।
रत रहे तपस्या में निशि दिन, चाहे वर्षा हो रहे घाम
जय परमहंस टीकरमाफी, ब्रह्मर्षि तुझे शत्-शत् प्रणाम।।
जिस चित्रकूट पावन थल पर, राघव ने जा विश्राम किया।
अत्री-अनुसुइया आश्रम जा, ऋषियों-मुनियों का काम किया।
बारह वर्षो तक परमहंस, जप किये, वहीं रह कृष्ण-राम।
जय परमहंस टीकरमाफी. ब्रह्मर्षि तुझे शत्-शत् प्रणाम।।
जो चरन शरन तव आया है, वह मनवांछित वर पाया है।
उसका जीवन तो धन्य हुआ, जिसको तेरा यश भाया है।
जय #परमहंस #ब्रह्मर्षि हरे, शत् बार करू तेरा बंदन।
अपर्ण कर श्रद्धा पुष्प तुझे सादर बंदन, है अभिनन्दन।।
तू ब्रह्म-जीव का सेतु बना, ब्रह्मर्षि धन्य तूपूर्णकाम नाम।
जय परमहंस टीकरमाफी, ब्रह्मर्षि तुझे शत्-शत् प्रणाम ।।
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