नीतिशतक श्लोक संख्या १
स्वानुभूत्येकमानाय नमः शान्ताय तेजसे ॥१॥
हिन्दी अनुवाद -
जो दिशा समय आकाश आदि से आवृत नहीं किया जा सकता है जो अनन्त है, अविनाशी है, जो मात्र ज्ञानस्वरूप है और आत्मानुभव रूप एकमात्र प्रमाण वाला है अर्थात जिसे केवल अनुभव किया जा सकता है जो निर्विकार है ऐसे तेजोमय परब्रह्म परमात्मा को नमस्कार है ।