नीतिशतक श्लोक संख्या ४

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
By -

 नीतिशतक श्लोक संख्या ४





प्रसह्य मणिमुद्धरेन्मकरवक्त्रदंष्ट्रान्तरात् 

समुद्रमपि सन्तरेत् प्रचलदूर्मिमालाकुलम् ।

भुजङ्गमपि कोपितं शिरसि पुष्पवद्धारये-

न्न तु प्रतिनिविष्टमूर्खजनचित्तमाराधयेत् ॥४॥

हिन्दी अनुवाद -

  मनुष्य मगरमच्छ के मुख की दाढ़ों के बीच से बलपूर्वक मणि को बाहर निकाल सकता है, उड़ती हुई भीषण लहरों से युक्त सागर को भी पार कर सकता है, क्रोधी सर्प को भी फूल की तरह सिर पर धारण कर सकता है, परंतु दुराग्रही मूर्ख मनुष्य के मन को अनुकूल नहीं कर सकता है ।



#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!