नीतिशतक श्लोक संख्या ५

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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नीतिशतक श्लोक संख्या ५




लभेत सिकतासु तैलमपि यत्नतः पीडयन्
पिबेच्च मृगतृष्णिकासु सलिलं पिपासार्दितः ।
कदाचिदपि पर्यटञ्छशविषाणमासादये-
न्न तु प्रतिनिविष्टमूर्खजनचित्तमाराधयेत् ॥५॥

हिन्दी अनुवाद -
  बहुत प्रयत्न करने पर भी बालू से तेल निकाला जा सकता है, मृग मरीचिका से प्यास को बुझाया जा सकता है, खरगोश की सिंह को प्राप्त करना भी संभव हो सकता है, किंतु दुराग्रही जन के मन को अनुकूल बनाना किसी प्रकार संभव नहीं है ।

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