भर्तृहरि का समय निर्धारण

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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भर्तृहरि का समय निर्धारण



 प्रचलित भारतीय जनश्रुति महाराज भर्तृहरि को विक्रम संवत् के संस्थापक महाराज विक्रमादित्य का बड़ा भाई मानती है । यदि इस जनश्रुति को ठीक भी मान लिया जाए तो भी इससे महाराज भर्तृहरि की स्थिति काल का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिलता है । प्रचलित विक्रम संवत्  "ईसापूर्व 57" वर्ष से प्रारंभ हुआ माना जाता है ।

    एक जनश्रुति के आधार पर "भट्टिकाव्य" का रचयिता भी भर्तृहरि को स्वीकार किया जाता है लेकिन यह सत्य नहीं है भर्तृहरि तथा भट्टि भिन्न-भिन्न व्यक्ति थे । इसमें कोई संदेह नहीं कि महाराज भर्तृहरि का काल तृतीय शताब्दी के लगभग रहा होगा क्योंकि उनके श्लोकों के उद्धरण अनेक ग्रंथों में देखे जाते हैं । नवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में होने वाले आचार्य आनंदवर्धन ने अपने "ध्वन्यालोक" में इनके श्लोकों को उद्धृत किया है । इनके अतिरिक्त रुय्यक, क्षेमेंद्र, अप्पयदीक्षित, धनंजय आदि अलंकारिकों ने भी उनके श्लोक उद्धृत किए हैं ।

    पंचतंत्र में भी भर्तृहरि के श्लोक उद्धृत मिलते हैं पंचतंत्र का समय निश्चित रूप से षष्ठशतक से पूर्व का है, अतः भर्तृहरि का समय भी षष्ठशतक से पूर्व का होना चाहिए ।

 ऐतिहासिक प्रमाणों से ज्ञात होता है कि ईसा की द्वितीय शताब्दी के आसपास संस्कृत को राज्य आश्रय प्राप्त होने लगा था अतः उस समय पंचतंत्र जैसे नीतिपरक सरल सुबोध ग्रंथों की आवश्यकता हुई होगी और यही समय पंचतंत्र का माना जा सकता है । पंचतंत्र में नीति शतक के श्लोक पाए जाते हैं अतः यह अनुमान किया जा सकता है कि ईशा की लगभग दूसरी शताब्दी ही भर्तृहरि का स्थिति काल हो सकता है और यदि प्रथम शतक में विक्रमादित्य की स्थिति सिद्ध हो जाती है तो भर्तृहरि को प्रथम शतक में मानने में कोई आपत्ति नहीं हो सकती है । परंतु जब तक यह सिद्ध नहीं होता है तब तक जनश्रुति के आधार पर ही निर्भर रहकर और वाह्य साक्ष्यों के काल्पनिक आधार पर भर्तृहरि को "द्वितीय/तृतीय" शतक के आसपास ही मानना उचित होगा ।

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