नीतिशतक श्लोक संख्या ३
अज्ञः सुखमाराध्यः सुखतरमाराध्यते विशेषज्ञः ।
ज्ञानलवदुर्विदग्धं ब्रह्माऽपि च तं नरं न रञ्जयति ॥३॥
हिन्दी अनुवाद -
अज्ञानी व्यक्ति को सरलतापूर्वक समझाया जा सकता है । विशेष समझदार या ज्ञानी व्यक्ति को तो और भी सरलता से समझाया जा सकता है । परंतु थोड़े से ज्ञान से युक्त, स्वयं को परम विद्वान समझने वाले मनुष्य को तो ब्राह्मा भी प्रसन्न नहीं कर सकता है ।
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