नीतिशतक श्लोक संख्या ११
नागेन्द्रो निशताङ्कुशेन समदो दण्डेन गोगर्दभौ ।
व्याधिर्भेषजसङ्ग्रहैश्च विविधैर्मन्त्रप्रयोगैर्विषं
सर्वस्योषधमस्ति शास्त्रविहितं मूर्खस्य नाऽस्त्यौषधम् ।।११।।
हिन्दी अनुवाद
अग्नि को जल के द्वारा शांत किया जा सकता है, सूर्य की धूप को सूप अथवा छाते के द्वारा दूर किया जा सकता है, मतवाले गजराज को तेज अंकुश से बस में किया जा सकता है, बैल और गधे को डंडे के द्वारा हटाया जा सकता है, बीमारी को औषधियों के संचय से दूर किया जा सकता है, अनेक प्रकार के मंत्रों के प्रयोग से विष को दूर किया जा सकता है, इसी तरह सभी की शास्त्रों में कही गई कुछ ना कुछ औषधि है, परंतु मूर्ख व्यक्ति की मूर्खता दूर करने के लिए कोई औषधि नहीं है ।
कवि के कथन का तात्पर्य है कि मूढ़जन की मूढ़ता दूर करने का कोई उपाय नहीं है । शास्त्रों में इसका कोई उपाय नहीं बतलाया गया है ।
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