नीतिशतक श्लोक संख्या १३
येषां न विद्या न तपो न दानं
ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः ।
ते मर्त्यलोके भुविभारभूता
मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति ॥१३॥
हिन्दी अनुवाद-
जिन मनुष्यों के पास न विद्या है, न तप है, न दान है, ना ज्ञान है, न शील है, न गुण है, न धर्म है, ऐसे मनुष्य इस मृत्युलोक में पृथ्वी पर भार रूप होकर मनुष्य के रूप में पशु के समान विचरण करते हैं ।
कवि के कथन का अभिप्राय यह है कि, विद्या आदि से हीन मनुष्य नहीं कहा जा सकता है । उसे तो केवल पशु ही समझना चाहिए । मनुष्य रूप में रहकर भी आचरण बस उन्हें पशु ही कहा जाना समीचीन होगा । अतः मानव को मानव कहलाने के लिए मानवीय गुणों का संचय करना चाहिए ।
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