स्वायत्तमेकान्तगुणं विधात्रा
विनिर्मितं छादनमज्ञतायाः ।
विशेषतः सर्वविदां समाजे
विभूषणं मौनमपण्डितानाम् ॥७॥
छन्द :- उपजाति
हिन्दी अनुवाद :-
ब्रह्मा जी ने मूर्ख जनों की मूर्खता का आच्छादक (आवरण) स्वाधीन, अत्यंत हितकारी मौन रहना बताया है जो कि विशेष रूप से सब कुछ जानने वाले विद्वानों की सभा में शोभादायक होता है ।
कवि के कथन का अभिप्राय यह है कि मूर्खजन के पास सबसे बड़ा साधन अपनी मूर्खता छिपाने का सबसे बड़ा साधन है । मौन ही है मूर्खों का विशिष्ट आभूषण मौन ही है यद्यपि उनका अलंबन सज्जनों के लिए भी हितकर है क्योंकि मितवा सीता गुणकारी है मौन रहने से कई दुर्गुणों से भी व्यक्ति बच जाता है गुरुजनों के लिए मौन रहना विशिष्ट हितकारी है वह विद्युत सभा में जाकर जब तक कुछ नहीं कहेंगे तब तक उनकी मूर्खता प्रकट ही नहीं होगी कोयल तथा कौवे की पहचान बोलने से ही होती है आचार्य चाणक्य का भी मत है कि -
मूर्खोऽपि शोभते तावत् सभायां वस्त्रवेष्टितः ।
तावच्च शोभते मूर्खो यावत् किञ्चिन्न भाषते ॥७॥