द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः । वनस्पतयः शान्तिर्विश्वे देवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि ॥ ( शु० य० ३६ १७) यतो यतः समीहसे ततो नो अभयं कुरु शं नः कुरु प्रजाभ्योऽभयं नः पशुभ्यः ॥ ( शु० य० ३६ २२) विश्वानिदेवसवितर्दुरितानि परासुव यद्भद्रं तन्न आसुव ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः सुशान्तिर्भवतु सर्वारिष्टसुशान्तिर्भवतु ॥
भावार्थ
हे प्रभु ! तीनों लोकों में शान्ति हो, जल में शान्ति हो, स्थल में शान्ति हो और आकाश में शान्ति हो,
अन्तरिक्ष में शान्ति हो, अग्नि और पवन में शान्ति हो, औषधि, वनस्पति, वन, तथा उपवन में शान्ति हो,
विश्व में शान्ति हो, अवचेतना में शान्ति हो,
राष्ट्र- सृजन में शान्ति हो, नगर, ग्राम और भवन में शान्ति हो
जीवमात्र के तन, मन और जगत के कण कण में शान्ति हो,
हे विश्व के स्वामी सूर्यदेव ! हमारे पापों को या नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करो और जो कल्याणकारी हो वह हमें प्रदान करो तीनों तापों की शान्ति हो, समस्त अरिष्ट नष्ट हों शान्ति हो॥
ॐ श्रीपरमात्मने नमः!🙏🏻 कृपया उपरोक्त शान्ति पाठ का अर्थ सांझा करें 🙏🏻
जवाब देंहटाएंमहोदय आपका बहुत बहुत धन्यवाद । आपके प्रयास से यह अर्थ प्रकाशित किया । आप पुनः पुनः एसे ही हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे।
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