संस्कृत गीतानि,लेख,सूरज कृष्ण शास्त्री, मानव जीवन का सदुपयोग कैसे करें, ?
मानव जीवन का सदुपयोग कैसे करें >>>
मानव जीवन का परम लक्ष्य है शान्ति । बहोत अधिक कर्म कर लेना ही मानव जीवन की सफलता नहीं है । मानव जीवन की सफलता है मनः शान्ति । व्यक्ति जीवन भर इसी की खोज में रहता है परन्तु शायद ही उसे यह शान्ति नसीब होती है । आध्यात्मिकता और भौतिकता दोनों का समन्वय आपके जीवन में शान्ति ला सकता है । इस मनुष्य शरीर की उपयोगिता को समझें क्योंकि यह मनुष्य शरीर बड़े भाग्य से प्राप्त है । संसार मेंं तीन चीजें परम दुर्लभ हैं -
दुर्लभं त्रयमेवैतत् लोकानुग्रहहेतुकम् ।
मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं महापुरुष संश्रयाः॥
1. मनुष्यत्व(मनुजता)
2. मुमुक्षुत्व(सत्कर्म)
3. महापुरुष संश्रय(महापुरुषों का आश्रय)
पहली दुर्लभ वस्तु है मनुष्य शरीर । जब अनेक जन्मों के पुण्य फल एकत्र होते हैं तब यह मानव जीवन प्राप्त होता है । यह शरीर साधनों का धाम है, मोक्ष का खुला हुआ साक्षात द्वार है । इस शरीर का प्रतिफल यह नहीं कि हम विषयों में ही उलझे रहें । विषयों में उलझने से जीवन का मार्ग सुलझ नहीं सकता । यदि आपने इस जीवन को प्राप्त करके भी सत्कार्य नहीं किया तो समझ लो आपने अपनी सांसों का हीरा देकर विषयों का काँच उठा लाए । यही बात महाकवि तुलसीदास जी कहते हैं -
बड़े भाग्य मानुष तन पावा । सुर दुर्लभ सदग्रंथन्हि गावा ॥
साधन धाम मोक्ष करि द्वारा । पाइ न जेहि परलोक संवारा ॥
एहि तन कर फल विषय न भाई । स्वर्गउ स्वल्प अन्त दुखदाई ॥
मनुष्य से बढ़कर मनुष्यत्व है । मनुष्य बनना तो दुर्लभ है ही , उससे भी दुर्लभ वस्तु है मनुष्यत्व अर्थात् मनुजता, मानवता । यह मानवता भी परम दुर्लभ वस्तु है ।
दूसरी वस्तु है - मुमुक्षुत्व(सत्कर्म) अथवा अपने लक्ष्य की प्राप्ति में संलग्नता । यह भी बहुत दुर्लभ वस्तु है । सत्कर्म करने की इच्छा भी सद्भाग्य से ही जागती है अतः अपने जीवन का कोई एक सुन्दर सा लक्ष्य बनाकर उसकी प्राप्ति हेतु सतत प्रयासशील रहें ।
तीसरी दुर्लभ वस्तु है - महापुरुषों का संश्रय अर्थात् आश्रय । आपके जीवन का सद्भाग्य ही महापुरुषों से आपका मिलन कराता है । महापुरुषों, विद्वानों काआश्रय पाकर हमारे जीवन का मार्ग सुगम हो जाता है ।
यदि आपके जीवन में ये तीन चीजें दृष्टिगत होती हैं अर्थात् - मानवता, लक्ष्य प्राप्ति के प्रति निष्ठा और विद्वानों का आश्रय । यदि आपके जीवन में ये हैं तो आप अपने जीवन का सदुपयोग निश्चित रूप से कर सकते हैं ।
उद्यम करते हुए अपनी सत्कीर्ति का विस्तार करें,सदुद्यम करें । उसी से मानव जीवन का सदुपयोग हो पायेगा । सत्कर्म के द्वारा प्रत्येक प्राणी का समादर, सबमें एक निश्चित सत्ता का दर्शन, उनकी मूलभूत विशेषताओं का संरक्षण, एवं उनकी आवश्यकताओं को अपनी सामर्थ्यानुसार पूरा करना मानव जीवन का सदुपयोग है ।
मानुषं जन्म संप्राप्य कुरु त्वं कर्म श्लाघिष्ठम् ।
तरुणतायाः प्रभावः सन् न बालस्त्वं किशोरस्त्वम् ।।
उद्यमेन विना प्रियवर् ! सफलता अङ्के नाऽगच्छति ।
विना सुरभेः किंशुकपुष्पमपि नहि रोचते सकलम् ।।
हिन्दी रूपान्तर-
मिला है जन्म मानुष तन तो कर लो कर्म भी अच्छे ।
जवानी चढ़ चुकी तन में रहे न अब तो तुम बच्चे ॥
बिना उद्यम किये प्यारे सफलता अङ्क न आती ।
बिना खुशबू के किंशुक पुष्प भी लगते नहीं अच्छे॥
sooraj krishna shastri |
साधु समीचीनम् किन्तु काचित् गेय.छन्दांसि व्यवहर्तव्यम्।।
जवाब देंहटाएंगेयमेवास्ति महोदयः.... कोई दीवाना कहता है 🤗
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